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1 Kings 2

:
Hindi - CLBSI
1 जब दाऊद का मृत्‍यु-समय समीप आया तब उसने अपने पुत्र सुलेमान को यह आदेश दिया,
2 ‘देख, अब मैं मृत्‍यु के उस मार्ग पर हूं जिस पर सब को चलना है। तू शक्‍तिशाली बन! अपना पौरुष दिखा।
3 जो दायित्‍व प्रभु परमेश्‍वर ने तुझे सौंपा है, उसको पूरा करना। तू उसके मार्ग पर चलना। तू उसकी संविधियों, आज्ञाओं, न्‍याय-सिद्धान्‍तों और सािक्षयों को मानना, जैसा वे मूसा की व्‍यवस्‍था-पुस्‍तक में लिखे हुए हैं। तब जो कार्य तू करेगा, जिस कार्य को तू अपने हाथ में लेगा, उसमें तू सफल होगा।
4 इस प्रकार प्रभु अपने वचन को, जो उसने मुझसे कहा था, पूर्ण करेगा। उसने यह कहा था: “यदि तेरे पुत्र अपने आचरण के प्रति सावधान रहेंगे, अपने सम्‍पूर्ण हृदय और प्राण से मेरे सम्‍मुख निष्‍ठा-पूर्वक चलते रहेंगे, तो इस्राएल के सिंहासन पर बैठने के लिए तेरे वंश में पुरुष का अभाव होगा।
5 ‘जो व्‍यवहार योआब बेन-सरूयाह ने मेरे साथ किया, उसको तू जानता है। उसने इस्राएली सेना के दो नायकों - अब्‍नेर बेन-नेर और अमासा बेन-येतर के साथ क्‍या किया था? उसने दोनों की हत्‍या की। यों हिंसात्‍मक रक्‍त-रंजित कार्य से शान्‍ति भंग की। उसने उस रक्‍त से, अपने कमर-बन्‍द पर और अपने जूतों पर दाग लगाया।
6 तू अपनी बुद्धि के अनुसार कार्य करना। उस वृद्ध योआब को शान्‍ति से मृतक-लोक में उतरने मत देना।
7 परन्‍तु गिलआद प्रदेश के रहने वाले बर्जिल्‍लइ के पुत्रों के साथ प्रेमपूर्ण व्‍यवहार करना। उन्‍हें अपनी मेज पर भोजन करने वालों में सम्‍मिलित करना; क्‍योंकि जब मैं तेरे भाई अबशालोम के सम्‍मुख से भागा था, तब उन्‍होंने मेरी सहायता की थी।
8 देख, तेरे साथ शिमई बेन-गेरा है, जो बिन्‍यामिन प्रदेश के बहूरीम का रहने वाला है। जिस दिन मैं महनइम नगर गया था, उस दिन उसने खूब गालियां दी थी। यह सच है कि जब वह यर्दन नदी पर मुझसे भेंट करने आया तब मैंने प्रभु की शपथ खाकर यह कहा था, “मैं तलवार से तेरा वध नहीं करूंगा।”
9 परन्‍तु अब तू उसे निर्दोष मत मानना। तू स्‍वयं बुद्धिमान है। तू स्‍वयं जानता है कि तुझे उसके साथ कैसा व्‍यवहार करना चाहिए। उस वृद्ध को रक्‍त-रंजित दण्‍डित कर मृतक लोक में उतार देना।’
10 तत्‍पश्‍चात् दाऊद अपने मृत पूर्वजों के साथ सो गया। उसे दाऊद-पुर में गाड़ा गया।
11 दाऊद ने इस्राएलियों पर चालीस वर्ष तक राज्‍य किया। उसने सात वर्ष तक हेब्रोन नगर में, और तैंतीस वर्ष तक राजधानी यरूशलेम में राज्‍य किया था।
12 सुलेमान अपने पिता के सिंहासन पर बैठा। उसका राज्‍य बहुत दृढ़ हो गया।
13 रानी हग्‍गीत का पुत्र अदोनियाह सुलेमान की माता बतशेबा के पास आया। उसने उसके सम्‍मुख झुककर अभिवादन किया। बतशेबा ने पूछा, ‘क्‍या तू मित्र के रूप में आया है?’ उसने उत्तर दिया, ‘हां, मित्र के रूप में।’
14 उसने आगे कहा, ‘मैं आपसे एक निवेदन करना चाहता हूं।’ बतशेबा ने कहा, ‘बोल।’
15 अदोनियाह ने कहा, ‘आप जानती हैं कि यह राज्‍य मुझे मिलना चाहिए था। सब इस्राएली मुझपर आशा लगाए हुए थे कि मैं ही राज्‍य करूंगा। परन्‍तु राज्‍य का पासा पलट गया, और राज्‍य मेरे भाई को मिल गया; क्‍योंकि यह प्रभु की इच्‍छा थी।
16 अब मैं आपसे निवेदन करना चाहता हूं। कृपया, आप इनकार कीजिए।’ बतशेबा ने उससे कहा, ‘बोल।’
17 अदोनियाह ने कहा, ‘कृपया, आप राजा सुलेमान से बोलिए कि वह मुझे शूनेम की अबीशग को प्रदान कर दें, कि मैं उसे अपनी पत्‍नी बना लूं। वह आपको कभी इनकार नहीं करेंगे।’
18 बतशेबा ने कहा, ‘अच्‍छा! मैं तेरे विषय में राजा से बात करूंगी।’
19 अत: बतशेबा राजा सुलेमान से अदोनियाह के विषय में बात करने के लिए आई। राजा सुलेमान उससे भेंट करने के लिए सिंहासन से उठा। सुलेमान ने झुककर उसका अभिवादन किया। तत्‍पश्‍चात् वह अपने सिंहासन पर बैठा। राजमाता के लिए आसन लाया गया। वह आसन पर राजा की दाहिनी ओर बैठ गई।
20 बतशेबा ने कहा, ‘मैं तुझसे एक छोटी-सी वस्‍तु मांगने आई हूं। तू उससे इनकार मत करना।’ राजा सुलेमान ने उत्तर दिया, ‘मेरी मां, मांग। मैं इनकार नहीं करूंगा।’
21 बतशेबा ने कहा, ‘तेरा भाई अदोनियाह शूनेम की अबीशग को अपनी पत्‍नी बनाना चाहता है। अत: वह उसको दे दी जाए।’
22 राजा सुलेमान ने अपनी मां को उत्तर दिया, ‘वाह! तूने अदोनियाह के लिए केवल अबीशग को क्‍यों मांगा? उसके लिए राज्‍य भी मांग! क्‍योंकि वह तो मेरा बड़ा भाई है न! पुरोहित एबयातर और योआब बेन-सरूयाह उसके पक्ष में हैं न!’
23 तब राजा सुलेमान ने प्रभु की यह शपथ खाई, ‘यदि अदोनियाह को अपनी इस बात का मूल्‍य प्राण से चुकाना पड़े तो परमेश्‍वर मेरे साथ यही व्‍यवहार करे, वरन् इससे अधिक कठोर दण्‍ड मुझे दे।
24 जिस प्रभु ने मुझे मेरे पिता के सिंहासन पर बैठाया, मुझे दृढ़ बनाया, जिसने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार मेरे पिता के लिए राजवंश की स्‍थापना की, उस जीवन्‍त प्रभु की सौगन्‍ध! आज ही अदोनियाह को मृत्‍यु-दण्‍ड दिया जाएगा।’
25 अत: राजा सुलेमान ने बनायाह बेन-यहोयादा को अदोनियाह पर प्रहार करने का आदेश दिया। उसने उस पर प्रहार किया और अदोनियाह मर गया।
26 राजा ने पुरोहित एबयातर से कहा, ‘तुम अनातोत नगर में अपनी जागीर को चले जाओ। तुम मृत्‍यु-दण्‍ड के योग्‍य हो! किन्‍तु मैं इस समय तुम्‍हें मृत्‍यु-दण्‍ड नहीं दूंगा, क्‍योंकि तुम मेरे पिता दाऊद के सामने प्रभु परमेश्‍वर की मंजूषा उठाकर चलते थे। तुमने मेरे पिता के साथ उनकी दु:ख-तकलीफों को भोगा है।’
27 तब सुलेमान ने एबयातर को प्रभु के पुरोहित-पद से हटा दिया। इस प्रकार प्रभु का यह वचन पूरा हुआ, जो उसने शिलोह में एली के परिवार के सम्‍बन्‍ध में कहा था।
28 यह समाचार योआब तक पहुंचा। वह प्रभु के शिविर की ओर भागा। उसने प्राण-रक्षा के लिए वेदी के सींग पकड़ लिये। यद्यपि योआब ने अबशालोम का पक्ष नहीं लिया था, तथापि उसने अदोनियाह का पक्ष लिया था।
29 राजा सुलेमान को यह बात बताई गई, ‘योआब प्रभु के शिविर को भाग गए हैं। वह वेदी के पास खड़े हैं।’ सुलेमान ने बनायाह बेन-यहोयादा को आदेश दिया, ‘जाओ, उसे मार डालो।’
30 अत: बनायाह प्रभु के शिविर में आया। उसने योआब से कहा, ‘महाराज यों कहते हैं: “बाहर निकल।” परन्‍तु उसने कहा, ‘नहीं। मैं यहीं मरूंगा!’ तब बनायाह राजा के पास यह उत्तर लाया: ‘योआब ने यों कहा। उसने मुझे इस प्रकार उत्तर दिया है।’
31 राजा ने उससे कहा, ‘जैसा वह बोला, वैसा ही उसके साथ करो: उसे मार कर गाड़ दो। यों जो रक्‍त योआब ने अकारण बहाया था, उसके दोष से मुझे और मेरे पिता के परिवार को मुक्‍त करो।
32 प्रभु उसके रक्‍त का दोष उसी के सिर पर डालेगा। उसने दो निर्दोष व्यक्‍तियों को मार डाला था, जो उससे अधिक धार्मिक और भले थे: इस्राएल प्रदेश का सेनापति अब्‍नेर बेन-नेर, और यहूदा प्रदेश का सेनापति अमासा बेन-येतर। योआब ने तलवार से उनकी हत्‍या की थी, और मेरे पिता दाऊद को पता नहीं चला था।
33 अत: उनकी हत्‍या का दोष योआब और उसके वंशजों के सिर पर सदा लगा रहेगा। परन्‍तु दाऊद, उनके वंशज, उनका राजवंश और उनका सिंहासन प्रभु से सदासर्वदा शान्‍ति प्राप्‍त करते रहेंगे।’
34 अत: बनायाह बेन-यहोयादा पुन: गया। उसने योआब पर प्रहार किया, और उसे मार डाला। योआब को निर्जन प्रदेश की सीमा पर उसके मकान में गाड़ा गया।
35 तत्‍पश्‍चात् राजा ने योआब के स्‍थान पर बनायाह बेन-यहोयादा को सेनापति तथा एबयातर के स्‍थान पर सादोक को पुरोहित नियुक्‍त किया।
36 राजा ने दूत भेजा, और शिमई को बुलाया। उसने शिमई से यह कहा, ‘तुम यरूशलेम नगर में अपने लिए एक मकान बनाओ। तुम वहीं रहना, और वहां से बाहर मत निकलना।
37 जिस दिन तुम नगर से बाहर निकलोगे, और किद्रोन की घाटी को पार करोगे, उसी दिन तुम्‍हें निश्‍चय ही मृत्‍यु-दण्‍ड मिलेगा। तुम यह बात अच्‍छी तरह से जान लो। तुम्‍हारी हत्‍या का दोष तुम्‍हारे ही सिर पर पड़ेगा।’
38 शिमई ने राजा को उत्तर दिया, ‘आपकी बात ठीक है, महाराज मेरे स्‍वामी! जैसा आपने कहा है, वैसे ही आपका सेवक करेगा।’ अत: शिमई यरूशलेम नगर में बहुत दिनों तक निवास करता रहा।
39 तीन वर्ष व्‍यतीत होने पर यह घटना घटी। शिमई के दो गुलाम गत नगर के राजा आकीश बेन-माकाह के पास भाग गए। यह बात शिमई को बताई गई, ‘देखिए, आपके गुलाम गत नगर में हैं।’
40 शिमई तैयार हुआ। उसने गधे पर काठी कसी, और गुलामों को ढूंढ़ने के लिए आकीश के पास गत नगर की ओर गया। वह गत नगर पहुंचा। वह वहां से अपने गुलामों को ले आया।
41 सुलेमान को बताया गया कि शिमई यरूशलेम से गत नगर गया था, और अब वहां से लौट आया है।
42 राजा ने दूत भेजा, और शिमई को बुलाया। उसने उससे कहा, ‘क्‍या मैंने तुम्‍हें प्रभु की शपथ नहीं दी थी? क्‍या मैंने तुम्‍हें यह गम्‍भीर चेतावनी नहीं दी थी: “जिस दिन तुम नगर से बाहर निकलोगे, कहीं जाओगे, तो तुम्‍हें निश्‍चय ही मृत्‍यु-दण्‍ड दिया जाएगा। तुम यह बात अच्‍छी तरह से जान लो!” तुमने मुझसे कहा था, “आपकी बात ठीक है। मैं आपकी आज्ञा का पालन करूंगा।”
43 तब तुमने प्रभु की सौगन्‍ध को पूरा क्‍यों नहीं किया? जो आज्ञा मैंने तुम्‍हें दी थी, उसका पालन क्‍यों नहीं किया?’
44 राजा ने शिमई से यह भी कहा, ‘जो दुष्‍कर्म तुमने मेरे पिता दाऊद के साथ किए थे, उन सबको तुम अपने हृदय में जानते हो। अत: प्रभु तुम्‍हारे दुष्‍कर्मों का फल तुम्‍हारे ही सिर पर डालेगा।
45 परन्‍तु वह मुझे, राजा सुलेमान को आशिष देगा, और प्रभु के सामने दाऊद का सिंहासन सदा-सर्वदा सुदृढ़ बना रहेगा।’
46 तत्‍पश्‍चात् राजा ने बनायाह बेन-यहोयादा को आदेश दिया। बनायाह महल से बाहर निकला। उसने शिमई पर प्रहार किया और शिमई मर गया। इस प्रकार राजसत्ता सुलेमान के हाथ में सुदृढ़ हो गई।